कर्त्ता बड़ा या करतार -Hindi Motivational Story
किसी गांव में धनी राम नामक एक गरीब किसान था । सारा दिन मेहनत कर अपना पेट पाल रहा था । धनी राम के पास ,एक दिन ,एक ज्ञानी फ़क़ीर भिक्षा के लिए आया। धनी ने भी फ़क़ीर का आदर भाव किया और अपनी हैसियत के मुताबिक ,उसे भिक्षा रूप में ,गेहूं दान किया ।फ़क़ीर बोला," परिवार कहाँ है तुम्हारा ", धनी बोला ," गरीब का कौन सा परिवार , बस में और मेरे बैल , कह कर धनी उदास हो गया । फ़क़ीर ने आशीर्वाद दिया ,"जल्द बन जायेगा ,विश्वास से कर्म कर और कर्त्ता बन, करतार खुद देगा ", ये कह फ़क़ीर चला गया ।थोड़े दिनों बाद ही धनी की शादी हो गयी और देखते ही देखते धनी का काम भी और आमदनी दोनों बढ़ने लगी ।एक दिन फ़क़ीर फिर से धनी के पास भिक्षा लेने आया, धनी फ़क़ीर को देख खुश हुआ आखिर उसी का तो आशीर्वाद था ,फ़क़ीर बोला अब तो परिवार बन गया खुश हो कि नहीं ,धनी बोला,"खुश हूँ पर बच्चों कि बिना क्या जीवन ", फ़क़ीर मुस्कराया बोला, वो भी आ जायेंगे , फ़िक्र न कर ,कर्त्ता बन, करतार खुद देगा ", कह फ़क़ीर चला गया । फ़क़ीर कि आशीर्वाद से धनी को पुत्र रतन की प्राप्ति हुई । वर्षो बीत गए अब धनी भी काफी बदल चुका था ।
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अब धनी के पास खूब ज़मीने और बैल थे ।बच्चे भी बड़े हो गए थे । एक दिन फ़क़ीर फिर धनी के पास, भिक्षा हेतु आया । धनी और उसके परिवार ने फ़क़ीर की खूब सेवा की । फ़क़ीर बोला,"अब तो सब ठीक है ना परिवार भी है, बच्चे भी है, अब तो तुम गरीब भी नहीं रहे । तुम्हारी बीवी कितनी सुशील और दया भाव वाली है" । धनी बोला ," सुशील ! अरे ये आफत है , सारा घर का कर्त्ता में हूँ, ये सिर्फ खरचने वाली है ,किसी काम की नहीं बस इसे मुँह हिलाना आता है ,ये लेकर दो ,वो लेकर दो ,यही हाल बच्चों का, तंग आ गया हूँ मैं , रोज रोज के झगड़ों से ", फ़क़ीर बोला ,"वो कैसे" , धनी बोला , "परिवार की वजह से मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ती है ,पता है आपको, सारा दिन खेतों में तपती धूप में काम करू ,तभी ये खुश हो खा पाएंगे नहीं ,तो मेरे बिना ये कुछ भी नहीं । आज मेरे कारण, मेरी मेहनत से ये घर बना हैअगर में ना हूँ तो ये कुछ भी नहीं कर पाएंगे ," फ़क़ीर मुस्करा पड़े ।
फ़क़ीर ने देखा कि धनी की बीवी और बच्चे ,वहाँ खड़े चुप चाप सब सुन रहे थे ,वो सबको बेइज़्ज़त कर रहा था पर वो कुछ भी नहीं बोले। फ़क़ीर उनके मनोभाव समझ गया कि सब "कर्त्ता "के गुलाम बन चुके है सो ये बेवस हो चुके है । फ़क़ीर को समझ आ गया कि धनी के मन में "घमंड" का आगमन हो चुका है ,बंदा नेक है ,सो इसे ठीक कर ही जाना उचित होगा । फ़क़ीर ने धनी को कहा ,"तुम्हारा वहम है ऐसा नहीं लगता ,वो चुप है क्योंकि तुम्हारा आदर करते है चाहो तो साबित करके दिखा सकता हूँ ,तुम्हारे बिना भी ये घर चलाने में ,सक्षम है बस एक मौका चाहिए ,उन्हें, तुम कुछ दिनों के लिए घर से बाहर चले जायो, फिर सभी कुछ ठीक हो जायेगा" ,धनी ने भी मान लिया और वे काम का बहाना बना शहर चला गया ।धनी के जाने के बाद फ़क़ीर ने गांव में ढिंढोरा पीट दिया कि धनी की मृत्यु हो चुकी है ।बस सब रोने पीटने लगे ,वक़्त बीता तो परिवार ने होश संभालना शुरू किया ,फ़क़ीर के सुझाव पर धनी के बेटों और बीवी ने ज़िम्मेवारी संभाल ली और स्वतंत्र हो ज़िन्दगी जीनी शुरू की ।
जब काफी वक़्त बीत जाने के बाद धनी घर आया तो देख हैरान कि खेतों को बेटे और हिसाब किताब पत्नी संभाल रही है वो भी कुशलता पूर्वक । धनी जब घर पहुंचा परिवार से मिला तो उन्होंने ने भी पहचानने से मना कर दिया धनी देख कर हैरान ,पत्नी बोली ,"जायो अब हमें तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं , अब हम आत्मनिर्भर हो गए ", ये सुन धनी रोने लगा परिवार से दूर रहने के कारण उसकी अवस्था भी निर्बल हो चुकी थी । अपना तिरस्कार देख वो रोते रोते फ़क़ीर के पास गया बोला," ये क्या किया आपने, सब सुधरने की जगह ,बदल चुके है अब किसी को मेरी ज़रुरत नहीं "।
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फ़क़ीर मुस्करा के बोला ," तुम तो कर्त्ता हो, तुम क्यों रो रहे हो , तुम तो सबको देने वाले हो जाओ ,हक़ से वापस ले लो , धनी परेशान उसे समझ नहीं आ रहा था ,फ़क़ीर के कहने का तात्पर्य क्या था । फ़क़ीर बोला, " कर्त्ता बड़ा है या करतार ?" धनी बोला ,"वो कैसे", फ़क़ीर बोला ," यही तो हम गलती कर बैठते है, ज़रा सा हमें मिलता नहीं कि हम करतार बन जाते है दूसरों कि लिए ", देने वाला भगवान ही है वो हर जगह है ,जब तुम उदास थे तो उसने तुम्हे घर परिवार दिया ,ये तुम्हारे परिवार के कर्म ही थे जिसके कारण तुम अमीर बने ।एक बात बताओ ,"क्या तुम्हे , ये सब विरासत में मिला है धनी बोला नहीं मेहनत से बना है ,पत्नी के आने के बाद आमदनी बढ़ी, बच्चो के आने के बाद घर बना ज़मीने बनी, फ़क़ीर बोला उनके आने के बाद ही बने तो भाग्यवान तुम थे या मेहनत तुम्हारी थी , धनी रोने लगा क्षमा प्रभु क्षमा ,मुझे समझ आ गया, मुझे माफ़ कर दे सचमुच कितनी बड़ी बात बताई आपने भाग्य तो इनका था ,जो में खा और कमा रहा था मैं तो अपने आप को झूठा " कर्त्ता "समझ "करतार" बन गया था ,मुझे माफ़ कर दे ,परिवार से दूर रह कर मुझे इनकी अहमियत का पता चला , पर अब तो देरी हो गयी उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया है ,फ़क़ीर मुस्करा के बोला तुझे नहीं तेरे घमंड को निकाला है ,वो वही बोल रहे थे जो मैंने सिखाया था वो देख ,पीछे मुड़ कर ,तेरा परिवार तुझे घर लेने आया है पर वापस इसी भावना से जाना कि "करतार बड़ा है ना के कर्त्ता " ।धनी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो वापस आपने परिवार के साथ ख़ुशी ख़ुशी रहने लगा ।
तो देखा आपने, जब भी किसी को किस्मत से ज़्यादा मिल जाता है तो वे शुक्राना करने की बजाये "मैं" को अहमियत देने लगते है "मैंने ये किया" , "मैं ही कर रहा हूँ ", "मैं ही कमाता हूँ ", इसी "मैं "के चक्कर मैं वो दूसरों को भी नीचा दिखने से भी गुरेज नहीं करते ,खुद उन्हें पता नहीं किसके भाग्य का खा रहे हैं। "करतार ने ही कर्त्ता बनाया है" और जो किरत करता है ,भाग्य भी उसी का साथ देता है और ये भाग्य पता नहीं किसके पैरों से निकल ,हमारे घर तक कैसे पहुंच रहा है ,वो ही जाने ,सो किसी का करने का श्रेय आपने आप को नहीं करतार को ही देना चाहिए ।