How to use your knowledge according to circumstances
Motivational Story / लकीर के फ़कीर
How to use your knowledge according to circumstances |
बहुत समय पहले की बात है ,दोस्तों एक गुरु जी के दो परम शिष्य थे । दोनों ही अपने गुरु जी को खूब प्यार व् स्नेह करते थे पर दोनों की समझ में ज़मीन आसमान सा फर्क था । भाव दोनों के विचार एक दूसरे से मेल नहीं करते थे ।
गुरु जी ने जब दोनों को पूरी शिक्षा दे दी तो उनके मन में विचार आया के क्यों न कुछ समय भ्रमण में बिताया जाये ,अब तो शिष्य भी योग्य बन चुके थे । उनकी उपस्थिति में वे आश्रम के फैंसले लेने योग्य बन चुके थे । विचार उपरांत उन्होंने दोनों शिष्यों को अपने पास बुलाया और दोनों को अपनी इच्छा बतलाई । दोनों खुश हो गए कि अब गुरुदेव उन्हें आश्रम का भार देने योग्य समझने लगे हैं ।
गुरुदेव ने दोनों को अपने पास बिठा प्यार से सेवा करने का आदेश दिया और दोनों को एक - एक मुठ्ठी भार गेहूं दिया । वे हैरानी से गुरुदेव की ओर देख रहे थे । गुरुदेव ने उन्हें आदेश दिया जब तक में वापस नहीं आ जाता ,तब तक मेरे इस अनाज का ख्याल रखना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है । वापस आकर में अपनी धरोहर वापस ले लूंगा ,क्या तुम इनकी चार साल तक संभाल रख पाओगे। पहला शिष्य बिना सोचे समझे बोला जी गुरुदेव "ज़रूर" । दूसरे ने भी सिर हिला आश्वासन दे दिया । गुरुदेव बेफिक्र हो यात्रा पर चले गए ।
गुरुदेव के जाने के बाद ,पहले शिष्य ने सोचा ,गेहूं को डब्बे में बंद रख देता हूँ ,तांकि कोई जानवर न खा जाये, इस प्रकार गुरुदेव के आने तक बचे रहेंगे । रोज़ वह गेहूं के डब्बे की पूजा गुरु के स्थान पर करता और रख देता । पर दूसरे शिष्य ने ऐसा नहीं किया । उसने सोचा गुरुदेव के आने में क्या पता कितना वक़्त लगे ,तब तक अनाज को ख़राब करना उचित नहीं होगा । फिर काफी सोचने के बाद उसने गेहूं को आश्रम के पास बीज दिया और रोज़ उन्हें पानी देता और उसका ख्याल रखता । पहला शिष्य उसकी मूर्खता को देख हस्ता और अपनी संभाल पर ख़ुशी और गर्व महसूस करता । काफी वक़्त बीत जाने के बाद एक दिन गुरुदेव वापस आ गए और दोनों को बुला अपनी धरोहर मांगने लगे । पहला शिष्य बड़े हर्ष के साथ कुटिया के अंदर गया और डिब्बा उठा लाया ,जिसमें गेहू था । जब गुरुदेव ने डिब्बा खोला बोले ,"हे भगवान !ये क्या है ? "गेहूं किधर है", इसमें तो बदबू आ रही है, कीट पतंगे और फफूंद जमा है ,मेरा अनाज किधर है ??? शिष्य डर गया बोला, " जी गुरुदेव ,यही तो है ,रोज़ में इसकी ही पूजा करता था ,कभी खोल के तक देखा नहीं ,पता नहीं ,कैसे अनाज ख़राब हो गया "।
फिर गुरुदेव ने दूसरे शिष्य को कहा लायो," मेरा गेहूं", दूसरा शिष्य गुरुदेव को पकड़ खेतों में ले गया बोला," गुरुदेव सब आपका ही है जितना चाहिए ले लो आप । गुरुदेव देख खुश हो गए ,वाह ! एक मुठ्ठी से तुमने इन्हे बेशुमार कर दिया" ,पूरा आश्रम गेहूं की सुगंध से महक उठा हर तरफ हरियाली थी । गुरुदेव खुश हुए और बोले ,"देखा ! इसे कहते है शिक्षा "।
शिक्षा ग्रहण करने और अमल करने में काफी फर्क होता है । हमें अपनी समझ से, शिक्षा का सही प्रयोग करना चाहिए । गुरुदेव ने पहले शिष्य को समझाया के शिक्षा समझने के योग्य बनाती है इसका उपयोग समझ के अनुसार ही करना चाहिए । इंसान सारी उम्र सीखने में ही निकाल देता है पर अमल नहीं करता, हमें "लकीर के फ़कीर" नहीं बनना चाहिए । अपनी समझ का भी इस्तेमाल करना चाहिए ।
तो दोस्तों ,देखा आपने पढ़ाई लिखाई से कुछ नहीं होता ,बात तो तब है जब सीखी हुई चीज़ों को आज़मा, कुछ नया करे । उम्मीद है, आप को बात समझ में आ गयी होगी । अगर कहानी अच्छी लगे, तो दोस्तों के साथ शेयर ज़रूर करे और भी रोचक कहानियों के लिए हमारे पेज Jass Sandhu को Like ज़रूर कीजिये ।